बारिश की गिरती बूँदों में
तुम मुझे सुनाई पड़ते हो
घनघोर रात के अँधेरें में
तुम मुझे दिखाई पड़ते हो
कैसे भूलू उन वादों को
जो तूने ही सब तोड़ दिये
कैसे निकलूँ उन यादों से
जिनको तुम तो हो भूल चले
ये बारिश की गिरती बूँदे
फिर से वैसे ही बरस रही
जैसे बरसी थी पिछले बरस
इस बार तेरे लिए तरस रही..
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेवफा की भी किस कदर याद आती है
जवाब देंहटाएंबारिश में भी उसकी तस्वीर उभर आती है ...
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
हटाएंयादों से उलझते मन का प्रीत राग प्रिय प्रीति जी। लिखती रहिये। ढेरों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर। ऐसे ही लिखती रहो। बहुत अच्छा ब्लॉग है। आपको ढेरों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अहसास ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
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