चित्र -गूगल साअभार
निकल पडी गन्तव्य को अपने तुम्हें दूर है जाना
संघर्षों के पथ को तुमने अपना जीवन माना
पग-पग पर तुम टकराती हो जीवन की सच्चाई से
तोड़ के सारी बाधाओं को चलती तुम अलसाई सी
माना कि तुम थकी बहुत हो, पर तुम्हें दूर है जाना
कदम दो कदम सुस्ता लो फिर तेजी से बढ़ जाना
करो परिश्रम आगे बढो तुम, मंजिल अभी दूर है
इतना लम्बा रास्ता है कि तुम छाया सुरुर है
कहाँ तुम्हारी मंजिल है ये मैने अब पहचाना
सागर से मिलने को चली तुम ये मैंनें है जाना....
बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना। एक नही, वस्तुतः गतिशीलता और जीवन्त जीवन का द्योतक है। सागर की विशालता मे समाहित हो जाना ही इसकी नियति है।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।।।।।
धन्यवाद सर
हटाएंपग-पग पर तुम टकराती हो जीवन की सच्चाई से
जवाब देंहटाएंतोड़ के सारी बाधाओं को चलती तुम अलसाई सी---बहुत ही अच्छी और गहरी पंक्तियां...। अच्छी रचना के लिए खूब बधाईयां।
धन्यवाद सर
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
बहुत -बहुत आभार मैम
हटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभार मैम
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंपग-पग पर तुम टकराती हो जीवन की सच्चाई से
जवाब देंहटाएंतोड़ के सारी बाधाओं को चलती तुम अलसाई सी
वाह बहुत खूब ।
सादर
आभार सर
हटाएंकहाँ तुम्हारी मंजिल है ये मैने अब पहचाना
जवाब देंहटाएंसागर से मिलने को चली तुम ये मैंनें है जाना....
नदी जीवन को बिना थके चलने की प्रेरणा देती है, बहुत ही सुंदर प्रीति जी
आभार मैम
हटाएंकरो परिश्रम आगे बढो तुम, मंजिल अभी दूर है
जवाब देंहटाएंइतना लम्बा रास्ता है कि तुम छाया सुरुर है
बहुत ही सुन्दर
आभार सर
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार मैम
हटाएंबहुत सुंदर अभव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआभार मैम
हटाएंबहुत बहुत अभिव्यक्ति, आदरणीया शुभकामनाएँ,
जवाब देंहटाएंआभार मैम
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