बारिश की गिरती बूँदों में
तुम मुझे सुनाई पड़ते हो
घनघोर रात के अँधेरें में
तुम मुझे दिखाई पड़ते हो
कैसे भूलू उन वादों को
जो तूने ही सब तोड़ दिये
कैसे निकलूँ उन यादों से
जिनको तुम तो हो भूल चले
ये बारिश की गिरती बूँदे
फिर से वैसे ही बरस रही
जैसे बरसी थी पिछले बरस
इस बार तेरे लिए तरस रही..