गुरुवार, 25 मार्च 2021

घूँघट और बुरका

                   चित्र - गूगल से साआभार

चाहे बुरका हो या घूँघट दोनों में ही महिलाओं को चेहरा ढकना पड़ता है। बुरके का इस्तेमाल मुस्लिम महिलायें या लड़कियाँ पुरुषों की निगाहों से बचने के लिए उपयोग करती हैं। मुस्लिम लड़कियों को बचपन से ही बुरके और हिजाब में रहना सिखाया जाता है। इसीलिए श्याद उनके लिए ये सामान्य बात हो जाती। मेरी खुद की कॉलेज की कई बैचमेट थी जो कॉलेज भी हिजाब पहनकर या बुरके में आती थी। 
मैंनें एकबार उससे पूछा भी था कि "कोई परेशानी नहीं होती तुम्हें इतनी गर्मी में" ?? 
तब उसने मुस्कराते हुए कहा "नहीं बचपन से पहन रही हूँ" 
मैंनें फिर से पूछा "तो तुम किसी फंक्शन में भी ऐसे ही रहती हो"
उसने तुरन्त ही कहा "हाँ इसमें क्या दिक्कत होगी"

इसके बाद में पास पूछने को कुछ नहीं था। इस चीज से एक बात समझ आ गयी कि बचपन से उन्हें इसी के अनुसार ढाला गया है तो इनके लिए ये बहुत सामान्य बात है। 

जहाँ तक घूँघट की बात है इसकी शुरूआत हिन्दु स्त्रियों ने मुस्लिम आक्रमणों के समय की स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए। अगर आप हमारे वेदो और पुराणों को पढ़ेगे तो उसमें मुँह ढँकने की परम्परा का कहीं उल्लेख नहीं मिलेगा। हिन्दुओं में घूँघट की परम्परा विवाह के बाद प्रारम्भ होती है। 
विवाह के पहले लड़कियों को मुँह नहीं ढँकना पड़ता। लेकिन विवाह होती ही वो इस कुप्रथा में बँध जाती है। विवाहित स्त्रियों को अपने ससुराल में घूँघट करना ही पड़ता है। यहीं से उसके लिए समस्याओं का जन्म होता है। शुरूआत घूँघट में रहने पर उसे अजीब से घुटन महसूस होती है पर धीरे -धीरे उसकी आदत बन जाती है। जहाँ सगाई और विवाह में वरमाला पर सब रिश्तेदार उसका मुँह देख लेते हैं फिर भी उसे ससुराल पहुँचते ही घूँघट में कैद कर दिया जाता है। 

मुझे समझ नहीं आता कि अब हम इस दौर में किससे और क्यों अपना मुँह छुपा रहें हैं।  अगर सामने वाले की नजरें या मानसिकता खराब है तो वो हमारे बुरके या घूँघट से सुधर तो नहीं जायेगी। घरवाले के सामने घूँघट करने का तर्क आजतक मेरी समझ से तो परे है। गाँव में लोग इसे सम्मान से जोड़कर रखते हैं। मैंनें तो लोगों को घूँघट किये घर के लोगों को गाली देते हुए भी सुना है तो इतना जरूर समझ में आ गया कि इसका सम्मान से दूर -दूर तक कोई वास्ता नहीं है। अब सच में समय आ गया है कि इस मुँह ढँकने की ढकोसलेबाजी से महिलाओं को आजादी मिल जाये। 

अगर इसे उनकी मर्जी पर छोड़ दिया जायेगा तो सम्भव है कि वो इससे कभी आजाद नहीं हो पायेगी कुछ महिलायें तो घूँघट हटाना चाहेगी लेकिन जो  महिलायें अब घूँघट की आदी हो चुकी हैं या बुजुर्ग महिलायें खुद भी इसका सपोर्ट करती हैं वो कभी इसे खत्म नहीं होनें देंगी। 
अभी जो बहस का मुद्द बना हुआ है ना अगर  महिलाओं ने पहले इसका विरोध किया होता तो श्याद स्थिति कुछ बेहतर होती। 

मैं सिर्फ ये कहना चाहती हूँ कि बुरका हो या घूँघट दोनों को ही अब भारत में बैन कर देना चाहिए।

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपका कथन व चिंता नितांत उपयुक्त और शत प्रतिशत सही है | पर यह समस्या हमारी प्राचीन संस्कृति व अशिक्षा के कारण है |सती प्रथा तो बहुत कुछ समाप्त हो गई पर बाल विवाह बहु विवाह क्या अभी भी समाप्त हुए हैं |विधवा विवाह क्या हर जगह सम्भव हैं |

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  2. कुछ भी कानूनी रूप से बैन करने पर खत्म नहीं होता ।।समाज की सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक ऐसी कुप्रथा चलती रहेंगी ।आज भी बाल विवाह भी हो रहे , दहेज भी लिया जा रहा ।
    वैसे घूंघट की प्रथा खुद ही दम तोड़ रही है , शायद अभी गाँव में काफी चलन है घूंघट का। शिक्षा के साथ उसमें भी कमी आएगी ।
    सार्थक लेख ।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. प्रिय प्रीति, अब बहुत अंतर है। पहले ज्यादा था, अगली पीढी नहीं करती घूँघट। परिवार भी काफी उदार हो चुके हैं। अच्छा लेख है। लिखती रहिये। होली की हार्दिक शुभकामनाएं ❤🌹

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    1. जी बिलकुल पहले से स्थिति सुधरी जरूर है लेकि सिर्फ बड़े शहरों में, छोटे शहरों में अभघ भी वही हाल है। हाँ अगर नौकरी करने वाली महिला हो तो छोटे शहरों में भी कुछ हद तक छूट है।

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  5. मैंने तो हाथभर घूँघट लटकाए भद्दे नाच करते हुए भी देखा है महिलाओं को। शर्म तो आँखों की होती है, घूँघट तो बस स्त्री के कैदी जीवन का प्रतीक है। हमारे यहाँ अब यह प्रथा हटा दी गई है। कुछ गाँवों में ही रह गई है बस।

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    1. धन्यवाद मैम

      उत्तर भारत में अभी भी ये प्रथा जीवित है।

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  6. विचारणीय अभिव्यक्ति।बढ़ियाँ।

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  7. सार्थक सृजन, समय बदल रहा है और रीतिरिवाज भी

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  8. विचारणीय रचना...सुन्दर...शुभकामनाएँ

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  9. विचारणीय आलेख। कुप्रथाओं के अवशेष रह रह कर अपने अब भी बाकी होने का एहसास कराते रहते हैं।
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ🙏

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  10. समाज की सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक ऐसी कुप्रथा चलती रहेंगी

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