कदम्ब के वृक्ष को देख के सोचा
कितना मनमोहक है ये
कृष्ण इसी फर झूलते होगें
इसके तले ही घूमते होगें
गइया चराने जाते होगें
अनेक लीलाए दिखाते होगें
माखन चोरी कर खाते होगें
मघुर मुरली की तान सुनाते होगें
उसको सुन सब बेसुध हो जाते होगें
हर पल कृष्ण ही कृष्ण बुलाते होगें
यही तो कृष्ण रास रचाते होगें
माता यशोदा नन्द उनको लाड़ लगाते होगें
कह कान्हा- कान्हा बुलाते होगें
जब पीताम्बर पहन वो चलते होगें
कामदेव क्षीण हो जाते होगें
उनकी सुन्दरता को देख ब्रजवासी सुख पाते होगें..
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-8-21) को "कान्हा आदर्शों की जिद हैं"'(चर्चा अंक- 4173) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
धन्यवाद मैम
हटाएंभक्तिभाव पूर्ण सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य और कल्पना से रचा बसा है आपका ये कहना कि----हर पल कृष्ण ही कृष्ण बुलाते होगें
जवाब देंहटाएंयही तो कृष्ण रास रचाते होंगे
माता यशोदा नन्द उनको लाड़ लगाते होंगे
कह कान्हा- कान्हा बुलाते होगें
---वाह , अद्त
धन्यवाद मैम
हटाएंबहुत खूब | कृष्णजन्माष्टमी की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम
हटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद
हटाएंकृष्ण को समर्पित बहुत सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर। जन्माष्टमी की खूब बधाईयां
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंधन्यवाद सर
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