चित्र गूगल से साआभार
किस्से कहानियों में
बहुत पढ़ा है काशी को
तो हम भी काशी जाना चाहते हैं
काशी के घाटों के कुछ दिन के
हम वासी होना चाहते हैं
महादेव की नगरी में कुछ वक्त बिताना चाहते हैं
उन तंग गलियों में
अल्हड़ो की तरह मंडराना चाहते है
काशी की दौड़ती दुनिया में
हम खुद को खोना चाहते हैं
हम तो बस अपने महादेव के होना चाहते हैं
अपने किये सारे पापों को हम चाहते धोना हैं
सारी समस्याओं को हम गंगा में डुबोना चाहते हैं
जितना कुछ पाया है इस जीवन में
अब हम वो सब कुछ खोना चाहते हैं
ऐ मणिकर्णिका हम तो बस तेरे ही होना चाहते हैं
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 14 अगस्त 2021 शाम 4.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, दिल से निकले इन तरानों के लिये हार्दिक आभार.
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