मैं दिन रात तुम्हारे ख्यालों में खोया रहता हूँ
तुम्हें देखकर जीता हूँ और तुम पर ही मरता हूँ
तुम ही मेरे एहसासों में समाई हो
तुमसे प्यार ही मेरे जीवन भर की कमाई है
तुम्हारी एक झलक के लिए हम बेकरार हैं
कैसे कहें कि कितना तुमसे प्यार है
तुम्हारे बिन तो ये जीवन भी बेकार है
क्या तुम्हें इन बातों का इल्म है?
तुम्हारे इन्तजार मैं बस आहें भरता हूँ
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारा हर जगह माथा टेक आया
लेकिन तुम्हारे आने का कुछ पता नहीं
इश्क़ किया है तुमसे इतनी बड़ी तो ये खता नहीं
गर खता है भी तो आकर सजा दे दो
कम से कम इन एहसासों को समझकर
इनको खत्म करने की ही वजह दे दो
अगर मैं भुला पाया इन एहसासों को
तो तुम्हारा मुझ पर अहसान होगा
और ना भुला पाया तो
तुम्हें एक नजर देखकर जीना आसान होगा
मैं समझ जाऊँगा कि तुम
मेरे हाथों की इन लकीरें का हिस्सा बन न सकोगी
ज़िन्दगी के हर कदम में तुम मेरे साथ चल ना सकोगी
मैं मान लूँगा कि जो स्नेह मैं तुमसे चाहता हूँ
वो मुझे कभी मिल ना सकेगा
तुमसे गिला तो नहीं लेकिन
ये दिल फिर किसी से इश्क़ कर ना सकेगा ...
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 07-05-2021) को
"विहान आयेगा"(चर्चा अंक-4058) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद
…
"मीना भारद्वाज"
आभार आपका मैम
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
हटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम
हटाएंबहुत खूबसूरती से विरह श्रृंगार लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
धन्यवाद मैम
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