मैं रोज अपनी भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से
थोड़ी सी शाम बचा लेता हूँ कि
तुम आओगी तो छत के
इसी हिस्से पर बैठकर बातें करेंगें
जहाँ से सूरज सिन्दूरी रंग में
लिपटा हुआ दिखाई देगा
जहाँ से पक्षियों का झुंड
अपने घोसलें में लौटता दिखाई देगा
इस सिन्दूरी आभा से मोहित हो
क्या पता एक शाम तुम भी
अपने घोसलें पर वापस आ जाओ
इसीलिए मैं ये शाम बचाकर रखता हूँ
कि ना जाने तुम कब लौट आओ..
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएं