चित्र -गूगल से साआभार
"डॉक्टर मेरी मम्मी की हालत बहुत खराब है प्लीज एडमिट कर लीजिए"
डॉक्टर "इनका आरटी पीसीआर करवाया आपने"
"जी पॉजिटिव है,, आज शाम ही रिपोर्ट आयी है और इनकी तबियत भी काफी खराब हो गयी है"
डॉक्टर "देखिये हमारे पास बेड तो है नहीं लेकिन आप कुछ एक्सट्रा पैसे दे तो हम देखेंगें कुछ हो सका तो "
"डाॅक्टर प्लीज आप बेड अरेन्ज करके इलाज करिये पैसे हम सारे भर देगें"
डाॅक्टर "वार्ड बॉय इनको वार्ड नम्बर 5 मे एडमिट कर दीजिए" और लड़के की तरफ देखकर "आप आॅक्सीजन सिलेन्डर का भी इन्तजाम कर लीजिए हमारे पास ज्यादा आॅक्सीजन है नहीं "
लड़का "जी ठीक "
वो एक तरफ अपनी माँ को एडमिट करवाके आॅक्सीजन सिलेंडर लेने भाग। बड़ी मुश्किल से पैसों का इन्तजाम करके एक सिलेन्डर 30000 में ले आया। पैसों की बड़ी समस्या थी लेकिन किसी तरह इन्तजाम कर लिया आखिर माँ की जान पर बन आयी थी।
अगले दिन माँ का अॉक्सीजन लेवल गिरा तो सिलेन्डर ने माँ की साँसें उखड़ने से बचा ली ये देखकर उसकी जान में जान आयी और इतना पैसा लगाना भी काम आ गया।
इसी बीच डॉक्टर आये और लड़के से बोले "इन्हें रेमेडिसिविर के इन्जेक्शन लगाने होंगें और हमारे पास सारे इन्जेक्शन खत्म हो चुके हैं तो तुम बाहर से खरीद लाओ"
लड़का फिर से मेडिकल स्टोर के चक्कर काटने लगा। लगभग 15 मेडिकल स्टोर पर दौड़भाग करने के बाद किसी के बताने पर वो एक मेडिकल स्टोर पर पहुँचा और बोला "भईया रेमडिसिविर इन्जेक्शन दे दो"
मेडिकल स्टोर वाले ने उसकी तरफ तिरछी निगाहों से देखा और बोला "एक ही तो बचा है" और दूसरी साइड खड़े आदमी की ओर इशारा करके बोला "ये पन्द्रह हजार दे रहे हैं,, लेकिन तुम सोलह दे दो तो तुम ले जाओ"
इन्जेक्शन का दाम सुनकर लड़के के चेहरे पर निराशा फैल गयी। उसने जल्दी से अपने जेब से अपना पर्स निकला और उसमें रखे पैसे गिनने लगा। कुल मिलाकर 6 हजार रूपये थे उसके पास।
तुरन्त ही उसने एक दो जगह कॉल किया लेकिन कुछ इन्तजाम नहीं हुआ। फिर उसने आशा भरी नजरों से मेडिकल स्टोर वाले को को देखा और बोला "भईया प्लीज मेरी मम्मी की तबियत बहुत खराब है और अभी मेरे पास सिर्फ 6 हजार रूपये ही बचे हैं। आप मुझे इन्जेक्शन दे दो ना.... मैं बाकी के पैसे भी आपको दो चार दिन में दे दूँगा"
मेडिकल स्टोर वाला "हाँ.. हाँ मैं तो यहाँ खैरात बाट रहा हूँ ना...जाओ पूरे पैसे लेकर आओ और इन्जेक्शन ले जाओ"
लड़का वहाँ से जल्दी से किसी रिश्तेदार के घर की तरफ भागा। अभी वो आधे रास्ते में ही था कि हॉस्पिटल से फोन आया कि उसकी माँ की साँसे चलना बन्द हो गयी हैं। उसकी माँ चली गयी। इतना सुनते ही लड़के के तो हाथ पैर सुन्न पड़ गये।
कुछ देर बाद खुद को सम्भाल कर वो बेचारा किसी तरह वहाँ से वापस हॉस्पिटल आया और उनके अन्तिम संस्कार की तैयारी में लग गया। जान पहचान और रिश्तेदार तो कोरोना की वजह से पहले ही पीछे हट गये। जब वो श्मशान घाट पहुँचा तो वहाँ भी उसका नम्बर दस लोगों के बाद था।
ऐसी हालत में बेचारा क्या करता फिर से लाइन में लगकर अपनी बारी का इन्तजार करने लगा...
ऐसे ही ना जाने कितने लोग लाइन में लगे हैं किसी को हास्पिटल में बेड चाहिए, किसी को दवा, किसी को अॉक्सीजन तो किसी को श्मशान घाट पर जगह लेकिन कालाबाजारी और भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। ऐसी हालत में भी लोग महिलाओं से हॉस्पिटल में भी छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आ रहे।
इन्सान अब इन्सान नहीं गिध्द हो गया है ऐसा गिध्द जो जीवित लोगों को नोच -नोचकर खाने के तैयार खड़ा है...
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 14-05-2021) को
"आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ:"(चर्चा अंक-4060) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद
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"मीना भारद्वाज"
पुनश्च: कृपया चर्चा अंक-4065 पढ़े ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआज का यथार्थ चित्रण,सटीक व्याख्या।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी पर सत्य।
सस्नेह।
मर्मस्पर्शी
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