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सोमवार, 17 मई 2021

अर्जुन की मनोदशा

                        चित्र गूगल से साआभार 

कविता लिखने में मेरा हाथ अभी काफी तंग है। 
इस छोटी सी कविता के माध्यम से मैंनें महाभारत के युध्द के समय कुरूक्षेत्र में खड़े अर्जुन के मन में व्याप्त संशय और गोविन्द द्वारा उसके निदान को दिखाने की छोटी सी कोशिश की है। 

ये माधव तुम ही बतालाओ
कैसे ये कर जाऊँ मैं
कैसे इन पर बाण चला दूँ 
जिनका ही गुण गाऊँ मैं 
कैसै लड़ जाऊँ इन सबसे 
इन सबका मैं प्यारा हूँ
जिन हाथों ने चलना सिखाया 
उनका मैं हत्यारा बनूँ
इतनी सारी हत्याओं का
 बोझ मैं कैसे उठाऊँगा 
जीवन दूभर हो जायेगा मेरा 
अगर इस युध्द में जीवित रह जाऊँगा
हे! माधव इस विकट परिस्थिति में
तुम ही राह दिखाओ
मेरे हाथ उठेगे ना 
अब तुम ही इसे सुलझाओ
उठो पार्थ तुम शस्त्र उठा लो 
इन सब पर तुम वार करो 
अपनी करनी भुगत रहें सब 
इनका तुम संहार करो 
माना बहुत कठिन है ये 
पर तुम अभी ये काम करो 
जिन कन्धों पर कभी खेले थे
उन्हीं को लहूलुहान करो
धर्म से बन्धे लोग
अधर्म की राह पर चल रहें हैं 
उचित अनुचित जानकर भी 
सब आँख मूँदकर चल रहें
इनकी चुप्पी के कारण ही 
इतना बड़ा अधर्म हुआ 
सब मूक खड़े थे सभा में 
जब द्रौपदी का चीर हरण हुआ 
दुर्योधन से ज्यादा तो ये सब ही दोषी हैं
इनके संरक्षण के कारण ही आज स्थिति ऐसी है
सुनो पार्थ अब धर्म की खातिर 
तुमको शस्त्र उठाना होगा 
मोहपाश को छोड़कर तुमको 
अपना कर्तव्य निभाना होगा 
अपने गांडीव से तुमको सबको मार गिराना होगा...

थोडी़ सी शाम

youtube मैं रोज अपनी भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से थोड़ी सी शाम बचा लेता हूँ कि  तुम आओगी तो छत के  इसी हिस्से पर बैठकर बातें करेंगें...