तोहफ़ा
आज देखा मैंनें तुम्हें
जब तुम शीशे के सामने बैठी
अपने बालों को
सुलझाने की कोशिश कर रही थी
और फिर अचानक ही तुम
वहाँ उसे उठकर गयी
और डायरी निकालकर उसमें रखा
गुलाब देखकर मुस्कराते हुए
जिस तरह तुम गुलाबी हो गयी
उस वक्त मुझे लगा कि
ईश्वर ने फूलों की रचना करने से पहले
क्या इतना विचार ही किया होगा कि
वो एक ऐसे तोहफे का निर्माण कर रहा है
जो खिले हुई स्थिति से लेकर
मुरझाने के बाद भी जीवन को महकाता रहेगा
गालों पर लालिमा और
होंठें पर मुस्कान लाता रहेगा
खुद सूख जायेगा लेकिन
यादों की ताजगी बचाता रहेगा ..