मंगलवार, 30 मार्च 2021

बारिश


बारिश की गिरती बूँदों में 

तुम मुझे सुनाई पड़ते हो 

घनघोर रात के अँधेरें में 

तुम मुझे दिखाई पड़ते हो 

कैसे भूलू उन वादों को 

जो तूने ही सब तोड़ दिये

कैसे निकलूँ उन यादों से

जिनको तुम तो हो भूल चले 

ये बारिश की गिरती बूँदे

फिर से वैसे ही बरस रही 

जैसे बरसी थी पिछले बरस 

इस बार तेरे लिए तरस रही.. 


गुरुवार, 25 मार्च 2021

घूँघट और बुरका

                   चित्र - गूगल से साआभार

चाहे बुरका हो या घूँघट दोनों में ही महिलाओं को चेहरा ढकना पड़ता है। बुरके का इस्तेमाल मुस्लिम महिलायें या लड़कियाँ पुरुषों की निगाहों से बचने के लिए उपयोग करती हैं। मुस्लिम लड़कियों को बचपन से ही बुरके और हिजाब में रहना सिखाया जाता है। इसीलिए श्याद उनके लिए ये सामान्य बात हो जाती। मेरी खुद की कॉलेज की कई बैचमेट थी जो कॉलेज भी हिजाब पहनकर या बुरके में आती थी। 
मैंनें एकबार उससे पूछा भी था कि "कोई परेशानी नहीं होती तुम्हें इतनी गर्मी में" ?? 
तब उसने मुस्कराते हुए कहा "नहीं बचपन से पहन रही हूँ" 
मैंनें फिर से पूछा "तो तुम किसी फंक्शन में भी ऐसे ही रहती हो"
उसने तुरन्त ही कहा "हाँ इसमें क्या दिक्कत होगी"

इसके बाद में पास पूछने को कुछ नहीं था। इस चीज से एक बात समझ आ गयी कि बचपन से उन्हें इसी के अनुसार ढाला गया है तो इनके लिए ये बहुत सामान्य बात है। 

जहाँ तक घूँघट की बात है इसकी शुरूआत हिन्दु स्त्रियों ने मुस्लिम आक्रमणों के समय की स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए। अगर आप हमारे वेदो और पुराणों को पढ़ेगे तो उसमें मुँह ढँकने की परम्परा का कहीं उल्लेख नहीं मिलेगा। हिन्दुओं में घूँघट की परम्परा विवाह के बाद प्रारम्भ होती है। 
विवाह के पहले लड़कियों को मुँह नहीं ढँकना पड़ता। लेकिन विवाह होती ही वो इस कुप्रथा में बँध जाती है। विवाहित स्त्रियों को अपने ससुराल में घूँघट करना ही पड़ता है। यहीं से उसके लिए समस्याओं का जन्म होता है। शुरूआत घूँघट में रहने पर उसे अजीब से घुटन महसूस होती है पर धीरे -धीरे उसकी आदत बन जाती है। जहाँ सगाई और विवाह में वरमाला पर सब रिश्तेदार उसका मुँह देख लेते हैं फिर भी उसे ससुराल पहुँचते ही घूँघट में कैद कर दिया जाता है। 

मुझे समझ नहीं आता कि अब हम इस दौर में किससे और क्यों अपना मुँह छुपा रहें हैं।  अगर सामने वाले की नजरें या मानसिकता खराब है तो वो हमारे बुरके या घूँघट से सुधर तो नहीं जायेगी। घरवाले के सामने घूँघट करने का तर्क आजतक मेरी समझ से तो परे है। गाँव में लोग इसे सम्मान से जोड़कर रखते हैं। मैंनें तो लोगों को घूँघट किये घर के लोगों को गाली देते हुए भी सुना है तो इतना जरूर समझ में आ गया कि इसका सम्मान से दूर -दूर तक कोई वास्ता नहीं है। अब सच में समय आ गया है कि इस मुँह ढँकने की ढकोसलेबाजी से महिलाओं को आजादी मिल जाये। 

अगर इसे उनकी मर्जी पर छोड़ दिया जायेगा तो सम्भव है कि वो इससे कभी आजाद नहीं हो पायेगी कुछ महिलायें तो घूँघट हटाना चाहेगी लेकिन जो  महिलायें अब घूँघट की आदी हो चुकी हैं या बुजुर्ग महिलायें खुद भी इसका सपोर्ट करती हैं वो कभी इसे खत्म नहीं होनें देंगी। 
अभी जो बहस का मुद्द बना हुआ है ना अगर  महिलाओं ने पहले इसका विरोध किया होता तो श्याद स्थिति कुछ बेहतर होती। 

मैं सिर्फ ये कहना चाहती हूँ कि बुरका हो या घूँघट दोनों को ही अब भारत में बैन कर देना चाहिए।

रविवार, 21 मार्च 2021

खूबसूरत शाम

एक शाम यही पहाड़ों पर
तुम संग आना चाहता हूँ 
कुछ घंटें सूकून भरे 
तुम संग बिताना चाहता हूँ 
इसी बेंच पर तुम्हारा हाथ पकड़ 
अनगित बातें करनी है
इस ठंडी हवा की छुवन को 
मैं तुम संग महसूस करना चाहता हूँ 
सिन्दूरी शाम की आहट में 
चिड़ियों की चहचहाहट देखनी है
एहसासों की पोटली खोलनी हैं 
उम्मीदों की उड़ान भरनी है
डूबते सूरज की रंगीन आभा 
में तुम संग रंग जाना चाहता हूँ 
कुछ कहना नहीं चाहता बस 
बस खामोश रहना चाहता हूँ 
एक शाम यही पहाड़ो पर 
तुम संग आना चाहता हूँ 
ज़िन्दगी के कुछ पल 
यही बिताना चाहता हूँ...... 
 

मंगलवार, 16 मार्च 2021

को-रोना


ये कोरोना का रोना खत्म ही नहीं हो रहा। साल भर हो रहें लेकिन स्थिति तो जस की तस है। जब लगता है कि अब गया करोना तो उसका नया स्ट्रेन आ धमकता है। ये भगवान जी पता नहीं कोरोना को उठा क्यों नहीं ले रहे। कभी कभी तो लगता है कहीं करोना स्वर्गलोक से अमृत तो नहीं चख आया। खैर जो भी हो इन्सानों की हालत तो मास्क लगाकर ही खराब हुई जा रही है। ना - ना आप गलत सोच रहें,, अरे अब मास्क कोरोना नहीं चालान के डर से लगाये जा रहे हैं। 
हाँ जब कोरोना नया नया इस दुनिया में आया था तब चारों ओर उसकी चर्चा बहुत जोर -शोर से हो रही थी। न्यूज चैन पर सिर्फ कोरोना केस की ही खबरें दिखाई जाती थी। तब हमारे देश में थोडे लोग कोरोना से भयभीत हुये थे। फिर लॉकडाउन ने तो कोरोना के भाव बढ़ा दिया। कोरोना की प्रसिध्दि की चर्चा सम्पूर्ण विश्व में होने लगी। कोरोना के भाव इतने बढ़ेगे किसी ने सोचा भी नहीं था। न्यूज चैनल से लेकर  हर सोशल नेटवर्किंग साइट पर कोरोना बहुत दिनों तक ट्रेन्ड करता रहा। उस समय लोग कोरोना से इतना डर गये कि सब्जियाँ भी साबुन से धुली जाती थीं। सैनेटाइजर की तो बात ही मत पूछों। जिन्होंने कभी नाम भी नहीं सुना था कि सैनेटाइजर किस चिड़ाया का नाम है वो भी दस -दस बोतल सैनेटाइजर घर में रखे हुए थे और घर पर पड़े थोड़ी -थोड़ी देर में हाथ में सैनेटाइजर ऐसे रगड कर लगाते थे जैसे कोरोना के साथ हाथ से लकीरें भी मिटा देंगें। कोरोना को हम भारतीयों ने त्यौहार की तरह ही मनाया। पूरे लॉकडाउन हमने किचन में तरह -तरह की चीजे बनाकर आठ -दस किलो वजन भी बढ़ा लिया। विश्व के दूसरे देशों में लोग बचाव कर रहे थे और हमारे यहाँ अचार, पापड़, जलेबी,  समोसा और रसगुल्ले बन रहे थे। लॉकडाऊन का पूरा आनन्द तो हम भारतीयों ने लिया वो भी कोरोना से डरते हुए। 


गोविन्द ने कहा है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी होगी तो समय के साथ कोरोना का प्रकोप घटा और धीरे -धीरे कोरोना केस में कमी आने लगी। हम जैसे लोगों को लगा कि यमराज कोरोना तक पहुँच गये। इससे उसकी प्रसिध्दि पर बुरा असर पड़ा और न्यूज चैनलों ने उसकी खबरें दिखाना लगभग बन्द ही कर दिया। लोगों के अन्दर से कोरोना का डर भी धीरे -धीरे कम हो गया। लोग बिना मास्क के घर से निकलने लगे और ये जो बार -बार हाथ सैनेटाइज करने की परम्परा शुरू हुई थी उसका पालन करना लोगों ने कम कर दिया। 

इसी बीच कोरोना की वैक्सीन आ गयी का हो - हल्ला भी मच गया। आजकल तो डेली टीकाकरण अभियान चल रहा है। सबके सब कोरोना को विदा करने की कोशिश में लगे हैं लेकिन श्याद अभी कोरोना को धरती छोड़ने की बिल्कुल इच्छा नहीं हैं। वैसे भी इतनी प्रसिध्दि के बाद भला कोई क्यों जाना चाहेगा।

इन सबका नतीजा यह हुआ कि कोरोना महाशय नाराज हो गये। अरे! भाई अर्श से फर्श पर आना किसे अच्छा लगता है। इसी समय कोरोना ने अपने व्यक्तित्व पर गहरा मंथन किया और निष्कर्ष निकाला कि अब मुझे कुछ नया करना होगा नहीं तो लोग मेरी वैल्यू खाँसी, जुकाम और बुखार के बराबर कर देंगे। 

फिर कोरोना जी ने खुद में कुछ बदलाव किये और फिर हाजिर हो गये सबके सामने नये रूप में। हमें जो लग रहा था कि यमराज कोरोना को उठा लेंगें उन्होंनें तो अपना रास्ता ही बदल दिया। जिसका टिकट हमें लग रहा था कन्फर्म लग रहा था वो वेटिंग रह गया। अब आलम ये है कि न्यूज चैनल भी सतर्कता से कोरोना के बढ़ते केस की खबरें चला रहें हैं और लोग फिर से मास्क पहनकर घर के बाहर निकल रहे हैं। वो कहतें हैं ना  "इतना मत डराओ कि डर ही खत्म हो जाये" तो कोरोना के साथ भी इस समय यही हो रहा लोगों ने अब इसे हल्के में लेना शुरू कर दिया है। सरकार ने चालान के रेट बढ़ा दिये है तो मास्क पहन कर निकलना जरूरी हो गया है। वैसे भी भारत की जनता नियमों का पालन तभी करती है जब पैनाल्टी बड़ी हो। छोटी -मोटी चीजों को भाव देना तो इनकी फितरत ही नहीं हैं। शुरू में तो कोरोना को भी भाव नहीं दिया 

कोरोना के नये स्ट्रेन से भारत में एक बार फिर केस बढ़ने लगे हैं। समय रहते सतर्कता बरतिये सिर्फ चालान के डर से नहीं कोरोना से लड़ने के लिए नियमों का पालन करिये। 

शनिवार, 13 मार्च 2021

मोबाइलीकरण


हाँ मोबाइलीकरण ही तो हो रहा है जब देखो सब हाथ में मोबाइल लिये उसकी स्क्रीन की तरफ नजर गडा़ये उस पर बार- बार  अपने अगूठे से उसे छूते रहते हैं। जब भी कुछ ढूँढना हो मोबाइल उठाया गूगल पर लिखा और जवाब समाने आ गया। कुछ सालों पहले सोचा ना था कि मोबाइल आने से ज़िन्दगी इतनी सुविधा जनक हो जायेगी और फोर जी की सुविधा ने तो सोने पर सुहागा वाला काम किया। 

अब तो हर सवाल का जवाब चन्द सेंकेंडों में मिल जाता। देश दुनिया में चल रही हर खबर चन्द सेकेण्ड में सब को मिल जाती है। खबरे वारल तो इतनी तेजी होती हैं जितनी तेजी से कभी भंडारे की जगह का भी पता नहीं चलता था। वाह रे मोबाइल की माया और सब को इन्टरनेट ने नचाया। मोबाइल तो इस कदर हमारे लिए जरुरी हो गया है कि उसके बिना हमारा खाना भी हजम नहीं होता। खाना खाने केे पहले  फोटो खींंचना भी एक परम्परा बन गया है।


 


ये सब तो चल ही रहा था कि कोरोना महाराज ने अपनी ग्रैन्ड एन्ट्री मारी और मोबाइल और इन्टरनेट की प्रसिद्ध को एक नये मुकाम तक पहुँचा दिया। 

कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन और अॉनलाइन क्लास के पचड़े ने तो इन्टरनेट कम्पनी वालों की झोली में हर दिन दिवाली वाली खुशी भर दी क्योंकि जहाँ सब खाने के लिये तरस रहे थे वहीं इनकी झोली में हर सेकेण्ड रिचार्ज के पैसे गिर रहे थे। इन्टरनेट डेटा प्रदान करने वाली कम्पनियों के लिए तो कोरोना और लॉकडाउन वरदान साबित हुआ। जहाँ सब कुछ लगभग बन्द हो चुका था वहीं इनका काम एक दम पीक पर था। सबको घर में रहना था अॉनलाइन ही काम करना था तो इन्टरनेट कम्पनियों में खुशियों की बहार आ गयी। दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की भी बढ़ गयी। वहीं घर पर पडे़ निठ्ठले लोग जो इस नुक्कड़ से उस नुक्कड़ आवारागर्दी करते हुए पाये जाते थे उनके पास भी अब काफी समय था तो नाचते, गाते खूब वीडियों बनाये गये।

नतीजा ये हुआ कि बच्चों से लेकर बड़े तक हम सब मोबाइल के आदी हो गये हैं। बच्चे भी किताब से ज्यादा इन्टरनेट में किसी भी चीज को ढूँढने को महत्व देने लगे हैं। अब तो आलम ये है कि रात में सोने के पहले और सुबह उठते ही मोबाइल हाथ में नजर आता है। जिसके बिस्तर के पास चार्जिंग प्वांइट है उसे तो समझो स्वर्ग प्राप्त हो गया। आखिर इतनी अच्छी किस्मत सबको कहाँ मिलती है एक ही जगह पूर दिन पड़े रहो मोबाइल कीबैटरी खत्म हो फिर भी उठकर चार्ज करने जाने की मेहनत तो नहीं करनी पड़ेगी।

अगर यही हाल रहा तो ज़िन्दगी बद से बदतर होती जायेगी। अपनी ज़िन्दगी में चरस बोने वाले हम स्वंय होगे।अभी ज्यादा देर नहीं हुई हमें सम्भल जाना चाहिए नहीं तो कल को ज़िन्दगी में आने वाली हर परिस्थिति को समझने में मोबाइल काम नहीं आयेगा। 

थोडी़ सी शाम

youtube मैं रोज अपनी भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से थोड़ी सी शाम बचा लेता हूँ कि  तुम आओगी तो छत के  इसी हिस्से पर बैठकर बातें करेंगें...